गरुड़ पुराण

गरुड़ पुराण

निखिलभुवननाथं शाश्वतं सुप्रशन्नम त्वतिविमलविशुद्धं निर्गुणे भावपुष्पै।
सुखमुदितसमस्तं पूजयामयात्मभावं विशतु हृदयपथे सर्वसाक्षी चिदात्मा।।