मार्कण्डेय पुराण

यद्योगिभिर्भावभयार्तीविनाशयोग्य मासाद्य वन्दितमतीव विविक्तचित्तैः।
तद्वः पुनातु हरीपादसरोजयुगम माविर्भवतक्रमविलंगित भूर्भुवः स्वः।।